Preface
अहंकार में डूबे मत जाइए
अहंकार का परित्याग करिए
जीवन- लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार एक प्रबल शत्रु है क्योंकि सभी भेद अहम् भावना से ही उत्पन्न होते हैं, जिनके उत्पन्न होते ही काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार उठ खड़े होते हैं ।। इन्हें बाहर से बुलाना नहीं पड़ता ।। अहंकार स्वत: भेद- बुद्धि के प्रसंग से इन्हें अंतःस्थल में पैदा कर देता है ।। मनुष्य परिस्थितियों को दोष देता है या किसी दूसरे व्यक्ति के मत्थे दोष मढ़ने का प्रयत्न करता है ।। किंतु यह दोष अपने अहंकार का है, जो अन्य विकारों की तरह आपको साधन- भ्रष्ट बना देता है ।। अत: आप इसे ही मारने का प्रयत्न कीजिए ।।
अहंकार का नाश करने में मनुष्य को सर्वप्रथम तत्पर होना चाहिए क्योंकि यही सारे अनर्थो का मूल है ।। ध्वंस, दुःख और विनाश के ही परिणाम इससे प्राप्त होते हैं ।। रावण की शक्ति का कुछ ठिकाना न था, कंस का बल और पराक्रम जगतविख्यात है ।। दुर्योधन, शिशुपाल, नेपोलियन, हिटलर आदि की शक्तियों के आगे संसार काँपता था किंतु उनका अहंकार ही उन्हें खा गया ।। मनुष्य को पतन की ओर ले जाने में अहंकार का ही हाथ रहता है ।। श्रेय के साधक को इससे दूर ही रहना चाहिए ।। भगवान सबसे पहले अभिमान ही नष्ट करते हैं ।। अहंकारी व्यक्ति को कभी उसका प्रकाश नहीं मिल सकता ।।
Table of content
1. अहंकार का परित्याग करिए
2. पाप मूल अभियान
3. अहंकार की असुरता से बचा जाए
4. द्वेष दुर्भाव से कोई लाभ नहीं
5. असुर और राक्षस कौन ?
6. स्वाभिमानी बनें, अहंकारी नहीं
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |