Preface
अनगढ़ से विकसित हुए ब्रह्माण्ड का तात्त्विक विवेचन
भारतीय दर्शन ने प्रकृति के दो स्वरूप माने हैं, एक परा प्रकृति और दूसरी अपरा प्रकृति। परा वह है जिसे पंचभौतिक कहा जा सकता है ।। इंद्रिय चेतना से जो अनुभव की जा सके अथवा यंत्र- उपकरणों की सहायता से जिसका प्रत्यक्ष ज्ञान किया जा सकता है, वह परा प्रकृति है ।। भौतिक विज्ञान का कार्यक्षेत्र यहीं तक सीमित है ।। कुछ
समय पूर्व तक वैज्ञानिक इतने को ही सब कुछ मानते थे ।। चेतना की व्याख्या करते समय यही कहा जाता था कि यह मात्र आणविक एवं कंपनपरक हलचलों की प्रतिक्रिया भर है ।। लेकिन विज्ञान की नई और अधुनातन खोजों ने उसके क्षेत्र को विस्तृत कर दिया है तथा अब अपरा प्रकृति के अस्तित्व को स्वीकार किया जाने लगा है ।।
अब वैज्ञानिक इसे आणविक हलचल और कंपन की प्रतिक्रिया नहीं मानते वरन सूक्ष्मजगत कहते हैं ।। इस क्षेत्र की हलचलें अब आणविक गतिविधियों नहीं कहीं जाती और न हो ताप, प्रकाश, शब्द के कंपनों से उसकी तुलना की जाती है ।। वरन इस क्षेत्र को हलचलों का कारण समष्टि चेतना के नाम से जाना, संबोधित किया जाता है ।। बल्ब में जलने वाली बिजली अंतरिक्ष में संव्याप्त विद्युत शक्ति की ही एक चिनगारी समझी जाती है और दोनों का सघन संबंध स्वीकार किया जाता है। यह बात अब व्यष्टि और समष्टि के संबंध में लागू समझी जाती है और व्यष्टि चेतना को समष्टि चेतना का ही अंग- अंश समझा जाता है ।। व्यष्टि चेतना को एक चिनगारी और समष्टि चेतना को व्यापक अग्नि के समकक्ष समझा- स्वीकार किया जाता है ।।
Table of content
• अनगढ़ से विकसित हुए ब्रह्मांड़ का तात्विक विवेचन
• पुनः अपने सौरमण्डल की चर्चा पर आएँ
• उस परमसत्ता के विराट रूप की एक झाँकी
• सतत गतिशील हमारा ब्रह्मांडीय परिवार
• इस विराट जगत में मनुष्य कि हस्ती ही क्या है ?
• ब्रह्मी चेतना के भिन्न भिन्न आयाम
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
88 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |