Preface
नामकरण संस्कार विवेचन
नामकरण संस्कार जन्म के दशर्वे दिन किया जाता हैं ।। सूतक निवृत्ति या गृह शुद्धि के लिए जहाँ प्रजनन हुआ हो तथा जहाँ सूतिका रही हो उस स्थान, कमरे को लीप- पोत कर स्वच्छ करना चाहिए ।। जो वस्त्र पहनने, बिछाने, ओढ़ने के हों उन सबको शुद्ध करना चाहिए ।।
प्राचीन समय में शिशु- जन्म के ठीक समय पर भी यज्ञादि कार्यं होते थे ।। अब वह प्रक्रिया बहिन हो गई है ।। इसलिए जातकर्म और नामकरण दोनों को इकट्ठा ही करना होता है ।।
पुंसवन संस्कार के समय जिस प्रकार मण्डप, वेदी, कलश आदि का प्रबन्ध किया गया था और गायत्री हवन के सामान्य विधान के अनुसार सारी व्यवस्था बनाई गई थी उपकरण इकट्ठे किये गये थे, उसी प्रकार इस संस्कार में भी करना होता है ।।
उपस्थित लोगों को यथास्थान बिठाकर आसनों पर पति- पत्नी बैठें ।। पत्नी गोदी के बच्चे को लेकर दाहिनी और पति बाँई ओर छोर बैठें ।। बैठते समय अक्षत वर्षा करते हुए मंगल मंत्र "ॐ भद्रं कर्णोभि" बोला जाय ।।
अभिषेक- अन्य कृत्य करने से पूर्व इस संस्कार में सबसे पहले अभिषेक होता है ।। बालक और उसकी माता यद्यपि स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर आये हैं, तब भी उनका आना सूतिका गृह से ही हुआ हैं, इसलिए उनकी अभिमंत्रित जल से शुद्धि की जाती है ।।
Table of content
• अभिषेक
• मेखला बन्धन
• मधुप्राशन
• मन्त्र दीक्षा
• सूर्य दर्शन
• पृथ्वी पूजन
• प्रत्यावर्तन
• नामकरण
• सामान्य क्रम
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |