Preface
मनुष्य के भोजन के लिए अब तक जितने पदार्थो की खोज की गई है दूध का स्थान उनमें बहुत ऊँचा है ।। यद्यपि जन्म लेने के बाद शैशवावस्था में हम सबको कुछ समय तक दूध पर ही निर्भर रहना पड़ता है और उसके बाद भी कई वर्षों तक शरीर को उचित पोषण मिलने के लिए अन्य खाद्य- पदार्थों के साथ दूध का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है, पर दूध की उपयोगिता इतने पर ही समाप्त नहीं हो जाती ।। जो लोग स्वास्थ्य- रक्षा के प्रति जागरूक होते हैं, आजीवन दूध का प्रयोग न्यूनाधिक मात्रा में करते ही रहते हैं और इसके फलस्वरूप निस्संदेह वे अनेक रोगों और निर्बलता से बचे रहकर शक्ति- संपन्न जीवन व्यतीत करते हैं ।।
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भारतवर्ष में दूध का यह महत्त्व आज से नहीं हजारों वर्षों से ज्ञात है और एक समय ऐसा था जबकि वास्तव में इस देश में "दूध की नदियाँ " बहती थीं ।। वेदों के अध्ययन से पता चलता है कि उस अति प्राचीन युग के भारतवासियों का मुख्य आहार दूध ही था ।। उस समय जंगलों और चरागाहों की अधिकता से प्रत्येक गृहस्थ सैकड़ों- हजारों गायें पाला करता था और उनसे आवश्यकतानुसार पर्याप्त दूध सहज में मिल जाता था ।। उस समय खेती का प्रचार भी आरंभिक अवस्था में था और मनुष्य थोड़ा- बहुत जौ, मोटा चावल आदि पैदा करके ही काम चला लेते थे ।।
Table of content
1. दूध पिएँ तो इस तरह
2. दीर्घ जीवन का साधन
3. दूध की आरोग्यवर्द्धक शक्ति
4. दूध के गुणकारी तत्व
5. दूध मे पाए जाने वाले विटामिन
6. विटामिन को सुरक्षित रखना
7. विभिन्न पशुओं का दूध
8. भैंस और बकरी का दूध
9. दही और मठा
10. मठा के संबंध मे भ्रम
11. मठा से कब्ज का इलाज
12. मठा और वृद्धावस्था
13. मठा की रोग निवारक शक्ति
14. दूध का शरीर पर दुहरा प्रभाव
15. दूध के व्यवहार की विधि
16. हमारा सत्संकल्प
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |