Preface
जिसके द्वारा जन्मादि (सृजन, स्थिति तथा प्रलय) का चक्र चलता है, जो श्रेष्ठता का पोषक तथा निकृष्टता का निवारक है,चेतन है, जिससे ब्रह्मा और हिरण्यगर्भ भी शक्ति पाते हैं तथा जो आदि ज्ञानदाता है, जिसके संबंध में विद्वान भी मोहित हो जाते हैं, जैसे प्रकाश (तेज) के प्रभाव से जल में थल तथा थल में जल का आभास होता है, वैसे ही जिसके प्रभाव से यह त्रिगुणात्मक मिथ्या जगत भी सत्य जैसा लगता है, उस स्वयं प्रकाशित, माया आदि से सदा मुक्त परं सत्य रूप परमात्मा को हम बुद्धि में धारण करते हैं ।। ।। १ ।। ।।
(१) ईश्वर को आदि कारण तथा दिव्य चेतना के रूप में ही स्मरण किया जाना चाहिए ।। (२) हर वस्तु में उस मूल चेतन सत्ता का अंश होने से जो आकर्षण दिखाई देता है, उसे लोग स्थूल पदार्थो की महिमा मानकर भ्रमित होते हैं ।। इस भ्रम से बचना तथा हर आकर्षक वस्तु के पीछे उस मूल सत्ता की झलक देखना आवश्यक है ।। (३) वह स्वयं प्रकाशित है इसलिए माया अर्थात् अज्ञानजनित कुचक्र से सदा मुक्त है ।। हमें भी अपने अंदर प्रकाश उत्पन्न करना चाहिए ।। (४) परमात्मा केवल चर्चा का विषय नहीं, उसे बुद्धि में धारण करना, बुद्धि को उसके नियंत्रण में छोड़ देना चाहिए ।। गायत्री मंत्र में भी धीमहि शब्द इसी उद्देश्य से आता है ।।
Table of content
1. प्रथम अध्याय
2. द्वितीय अध्याय
3. तृतीय अध्याय
4. चतुर्थ अध्याय
5. पंचम अध्याय
6. षष्टम अध्याय
7. सप्तम अध्याय
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
160 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |