Preface
न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है कि ईमानदारी और नीति निष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही हाथ लगता है । संभवत: इसका कारण यह है कि लोग बेईमानी अपनाकर छल-बल से, धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन बटोरते देखेजाते हैं । तेजी से बढ़ती संपन्नता देखकर देखने वालों के मन में भीवैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है । वे देखते हैंकि वैभव संपन्न लोगों का रौब और दबदबा रहता है । किंतु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते है कि बेईमानी और चालाकी से अर्जित किए गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की दीवार हीहोता है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाता है तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुँह पर उनकी प्रशंसा अवश्य करदेते हैं, परंतु हृदय में उनके भी आदर भाव नहीं होता ।
इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले,नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीति निष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परंतु उनकी प्रगति ठोस होती है तथा उनका सुयश देश काल की सीमाओं को लांघकर विश्वव्यापी और अमर हो जाता है । अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार जार्ज बर्नार्डशॉ को कौन नहीं जानता । उन्होंने अपना जीवन प्रापर्टी डीलर के यहाँ उसके कार्यालय में क्लर्क की नौकरी से प्रारंभ किया था ।
Table of content
1. बड़े आदमी नहीं महामानव बनें
2. आकांक्षाएँ उचित और सोद्देश्य हों
3. ईमानदारी विवेक की कसौटी पर
4. सफलताओं का मूलभूत आधार- लगन एवं उत्कट अभिलाषा
5. नियमितता का अभ्यास एक श्रेष्ठ गुण है
6. वैभव नहीं महानता कमाएँ
7. संपदाएँ सत्कार्यों में नियोजित हों
8. चरित्र एक सर्वोपरि संपदा
9. व्यक्तित्व की कसौटी- आदर्शनिष्ठा
10. बड़प्पन का मापदंड- सादगी और शालीनता
11. शालीनता और सदाशयता को प्रश्रय मिले
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
56 |
Dimensions |
182mm X120mm X 2mm |