Preface
इसमें संदेह नहीं कि जो मनीषी व्यक्ति मृत्यु के अनिवार्य सत्य को साहस के साथ हृदयंगम कर लेते हैं, वे न केवल उसके भय से ही मुक्त रहते हैं, प्रत्युत जीवन का पूरा-पूरा लाभ भी उठाते हैं। जिन्हें यह विश्वास रहता है कि न जाने मृत्यु किस समय अपनी गोद में उठा ले, वे जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कर लेने में बड़ी तत्परता तथा सतर्कता से लगे रहते हैं। वे बहुत कुछ, मृत्यु की वेला से पूर्व कर डालने के लिए प्रयत्नों में कमी नहीं रखते। मृत्यु का वास्तविक विश्वास उन्हें अधिकाधिक सक्रिय बना देता है।
यह जान लेने की बात है कि आत्मा अजर-अमर है तो शरीर के प्रति आसक्ति का भाव नहीं होना चाहिए। शरीर वह साधन मात्र है जिससे हम चाहें तो परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। किंतु जब मूल लक्ष्य भूल जाता है और शरीर के सुख ही साध्य हो जाते हैं तो मनुष्य को मौत का भय सताने लगता है। यह एक तरह मनुष्य का अज्ञान ही है अन्यथा मृत्यु मनुष्य के लिए हितकारक ही है। जीर्ण-शीर्ण शरीर की उपयोगिता भी क्या हो सकती है ? प्रकृति हमें नया शरीर देने के लिए ही तो अपने पास बुलाती है। 'नया शरीर प्राप्त होगा' – इससे तो प्रसन्न्ता ही होनी चाहिए। दु:ख की इसमें क्या बात है ? अच्छी वस्तु प्राप्त करने में तो हर्ष ही होना चाहिए।
संसार के सबसे बड़े आश्चर्य-संबन्धी प्रश्न का उत्तर देते हुए धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा था –“संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि नित्य-प्रति दूसरों को मरते देखकर भी मनुष्य अपनी मृत्यु में विश्वास करने को तैयार नहीं होता। वह समझता है कि और कोई भले ही मरे पर वह सदा सर्वदा धरती पर बना रहेगा।”
Table of content
• मरने से डरना क्या
• मृत्यु से केवल कायर ही डरते हैं
• मौत से न डरिये वह आपकी मित्र है
• मृत्यु एक अनिवार्य आवश्यकता
• मृत्यु हमारे जीवन का अन्तिम अतिथि
• मृत्यु का सदा स्मरण रखें
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |