Preface
आज भी जिसने एक बड़े काठ को काट कर छेद कर डाला था, वह भ्रमर सायंकाल तक एक कमल के फूल पर जा बैठा ।। कमल के सौंदर्य और सुवास में भ्रमर का मन कुछ ऐसा विभोर हुआ कि रात हो गई, फूल की बिखरी हुई पंखुडियां सिमटकर कली के आकार में आ गई ।। भौंरा भीतर हो ही बंद होकर रह गया ।। रात भर प्रतीक्षा की,भ्रमर चाहता तो उस कली को कई और से छेद करके रात भर में कई बार बाहर आता और फिर अंदर चला जाता है पर वह तो स्वयं भी कली की एक पंखुडी को गया ।। प्रात:काल सूर्य की किरणे उस पुष्प पर पड़ी तो पंखुडियां फिर खिली और वह भौंरा वैसे ही रसमग्न अवस्था में बाहर निकल आया ।।
यह देखकर संत ज्ञानेश्वर ने अपने शिष्यों से कहा- देखा तुमने ।। प्रेम का यह स्वरूप समझने योग्य है ।। भक्ति कोई नया गुण नहीं, वह प्रेम का ही एक स्वरूप है ।। जब
हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो द्रवीभूत अंतःकरण सर्वत्र व्याप्त ईश्वरीय सत्ता में सविकल्प तदाकार रूप धारण कर लेता है, इसी को भक्ति कहते हैं ।। भगवान निर्विकल्प और प्रेमी सविकल्प दोनों एक हो जाते हैं, द्वैत भाव भी अद्वैत हो जाता है ।। इसी बात को शास्त्रकार ने इस प्रकार कहा है- द्रवी भाव पूर्विका मनसो भगवदेकात्मा रूपा सविकल्प वृत्तिर्भक्तिरिती ।।
Table of content
• प्रेम वचन
• प्रेमयोग की भक्ति साधना
• आत्म-जाग्रति की अमर साधना
• प्रेम साधना द्वारा विश्वात्मा की अनुभूति
• ईश्वर बोध की सर्वसुलभ साधना-प्रेम
• प्रेम-साधना हमें परमात्मा से मिला देती है
• परमात्मा की प्राप्ति प्रेमी के लिए ही संभव
• प्रेम के द्वारा सर्वांगीण कल्याण की साधना
• प्रेम का अमृत और उसकी उपलब्धि
• मानव जीवन का अमृत-प्रेम
• प्रेम का अमृत मधुरतम है
• प्रेम साधना द्वारा आंतरिक उल्लास का विकास
• ढाई आखर प्रेम का
• प्रेम रूप अमृत और उसका रसास्वादन
• प्रेम और सेवा ही तो धर्म है
• प्रेम का आरंभ होता है अंत नहीं
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2010 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
80 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |