Preface
मनुष्य का प्रधान लक्षण है- स्वाभिमान ।। बल, धन, विद्या, सत्ता आदि सम्पदाओं का अहंकार करना बात दूसरी है, घमण्ड की निन्दा की गई है और उसे पतनकारी दुष्प्रवृत्ति बताया गया है स्वाभिमान इससे सर्वथा भिन्न है ।। आत्म- गौरव एवं आत्म- सम्मान आत्मा की भूख है ।। आत्मा महान् है उसकी महत्ता एवं श्रेष्ठता का वारापार नहीं इसलिए उसे अपने गौरव के अनुरूप परिस्थितियों में ही रहना चाहिए ।। तिरस्कार एवं अपमान की स्थिति उसके लिए न तो वांछनीय ही हो सकती है और न उपयुक्त ही ।। तिरस्कृत रहते हुए भी यों जिन्दगी को जिया जा सकता है ।। अन्न मिलता रहे तो साँस चलती रहेगी पर इससे आत्मिक महानता जीवित नहीं रह सकती उक्के लिए तो स्वाभिमान एवं आत्म- गौरव की रक्षा करने वाली स्थिति ही चाहिए ।।
आत्म- गौरव को सबसे अधिक ठेस पहुँचाने वाली और आत्मा को तत्काल नीचा दिखाने वाली वस्तु हैं- भिक्षा ।। भिखारी तिनके से भी हत्का होता है उनका न कोई सम्मान रहता है और न मूल्य ।। हर व्यक्ति उसे ओछा, गया- गुजरा दीन- दरिद्र एवं अपाहिज असमर्थ समझता है और उसके प्रति तिरस्कार एवं घृणा के भाव रखता है ।। ऐसा सम्मान रहित व्यक्ति अपने आपकी दृष्टि में भी छोटा हो जाता है ।। हीनता एवं दीनता उसकी नस- नस में भर जाती है ।। इन परिस्थितियों में पड़ा हुआ व्यक्ति जीवित ही मृतक है ।।
भिक्षा माँगने का अधिकार केवल दो प्रकार के व्यक्तियों को है एक उनको जो अपाहिज असमर्थ, अन्धे कोढ़ी अशक्त हैं ।। हाथ- पैर इस लायक नहीं कि अपना पेट भरने लायक भी कमा सके ऐसे व्यक्ति को यदि उनके स्वजन सम्बन्धी जीवित रखने लायक सुविधा नहीं देते तो जीवन धारण करने की विवशता में उन्हें भिक्षा माँगने का अधिकार है ।।
Table of content
1. भिक्षा व्यवसाय देश और समाज पर कलंक
2. उज्ज्वल व्यक्तितत्व आदर्श चरित्र
3. दान के दो प्रयोजन
4. विकृतियाँ सुधारी जायँ
5. समाज का एक कलंक-भिक्षा वृत्ति
6. लाख की विशाल जन- शक्ति
7. आर्थिक व नैतिक हानि
8. भिक्षा जीवियो के स्तर
9. अधिक चतुरों के अधिक पाखण्ड
10. एक से बढ़कर एक
11. अन्धविश्वासों का प्रचार
12. देव उपासना का स्वरुप
13. नित नये देवताओं का सृजन
14. चोर बनाम भिक्षुक
15. भिक्षा जीवियों की विविध श्रेणियाँ
16. हमारा कलंक एवं अभिशाप
17. समाज शरीर का रिसता व्रण - भिक्षा वृति
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |