Preface
आज युग-परिवर्तन की चर्चा प्राय: सर्वत्र सुनने में आती है । संसार की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक अंतर पड़ जाने से उसका प्रभाव सामाजिक और धार्मिक परंपराओं पर भी दिखलाई दे रहा है । पर ये दोनों ही क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें मनुष्य जल्दी से बदलाव करने को तैयार नहीं होता । खासकर हमारे देश में तो सामान्य सामाजिक प्रथाओं को भी धर्म का अंग मान लिया जाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि प्रत्यक्ष में हानिकारक परपराओं को त्यागने या बदलने में लोग आनाकानी करने लगते हैं । वे यह नहीं समझते कि सामाजिक प्रथाएँ मुख्यत: देश-काल पर आधारित होती हैं । उनके लिए यह हठ करना कि वे पूर्व समय से चली आयी हैं और आगे भी ज्यों की त्यों चलती रहनी चाहिए, नासमझी का परिचय देना है ।
इस पुस्तक में बतलाया गया है कि आज सामयिक परिस्थितियों के कारण युग-परिवर्तन की जो विचारधारा जोर पकड़ रही है, उसको देखते हुए हमको अपनी सामाजिक प्रथाओं की अच्छी तरह जाँच करके, उनमें समयानुकूल परिवर्तन करने चाहिए । विशेष रूप से हमारे यहाँ की विवाह और मरणोपरांत की प्रथाएँ इतनी लंबी-चौड़ी और खर्चीली बना दी गई है कि अधिकांश लोगों को वे असह्य भार स्वरूप अनुभव होती हैं, पर जातीय बंधनों के कारण लोग रोते-झींकते, मरते-जीते उनको आगे ढकलते जा रहे है । यह स्थिति शीघ्र से शीघ्र बदलनी चाहिए । तभी हम सुख-शांति के दर्शन कर सकेंगे ।
Table of content
1. युग-परिवर्तन और उसकी सभावनाएँ
2. इस विषम वेला में हमारा महान् उत्तरदायित्व
3. परिवर्तन का केंद्र बिंदु-सद्ज्ञान
4. असुरता से देवत्व की ओर
5. सामाजिक प्रगति का एकमात्र आधार
6. यह सत्यानाशी सामाजिक कुरीतियाँ
7. सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन
8. हमारा समाज असभ्य और अविवेकी न हो
9. सभ्य समाज का स्वरूप और आधार
10. समाज को शक्तिशाली बनायें
11. लोकमानस की शुद्धि कौन करेगा ?
12. समाज-सुधार के लिए प्रबुद्ध वर्ग आगे बढे़
13. सबकी उन्नति में अपनी उन्नति
14. देश के लिए-समाज के लिए
15. मानव जाति की समस्याएँ इस तरह सुलझेंगी
16. आत्म-सुधार-विश्व कल्याण का सबसे सरल मार्ग
17. पहले हम मनुष्य बनें, पीछे कुछ और
18. सेवा हमारी जीवन-नीति बने
19. चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है
20. व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदंड बदलें
21. धन को सम्मानित न किया जाए
22. नागरिकता और नैतिकता की आधारशिला
23. सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन न हो
24. व्यवहार-कुशलता की आध्यात्मिक पृष्ठभूमियाँ
25. विरोधियों की उपेक्षा कीजिये
26. अनुशासन का उल्लंघन न करें
27. मंगल सोचिए-मंगल करिए
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |