Preface
दुर्बलता के पाप से बचिए
संसार में अनेक दुष्कर्मों को पाप की संज्ञा दी जाती है ।। चोरी करना, हत्या, दुराचार, झूठ बोलना, धोखा देना, विश्वासघात करना, किसी को पीड़ा- नुकसान पहुंचाना आदि पापकर्म कहे जाते हैं ।। लेकिन एक और भी बड़ा पाप होता है, वह है कमजोर होना ।। दुर्बलता अपने आप में एक बहुत बड़ा पाप है ।। दुर्बलता किसी प्रकार की हो; चाहे शारीरिक हो, मानसिक या सामाजिक मनुष्य के लिए अभिशाप है ।। क्योंकि दुर्बलता से अन्य पापों को प्रोत्साहन मिलता है ।। कमजोर आदमी ही पाप में जल्दी प्रवृत्त होता है ।।
कमजोरी का मोटा अर्थ शारीरिक दुर्बलता से ही लिया जाता है और यही अधिक हानिकारक है ।। स्वर्गीय लोकमान्य तिलक ने कहा था- शरीर को रोगी और दुर्बल रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं है । क्योंकि शरीर के दुर्बल होने पर मनुष्य का मस्तिष्क भी दुर्बल हो जाता है और दुर्बल मस्तिष्क बुराइयों के द्वारा जल्दी ही घसीट लिया जाता है ।। दुर्बल व्यक्ति ही संसार में बुराइयों को प्रोत्साहन देते हैं ।। दुःखों की जड़ दुर्बलता ही है ।। मिल्टन ने कहा है- कमजोर होना ही दुखी होना है । स्वामी विवेकानंद ने कहा है- कमजोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, दुर्बलता का नाम ही मृत्यु है । हमारे बहुत से दुःखों का कारण यह दुर्बलता ही है ।।
Table of content
• दुर्बलता के पाप से बचिए
• हम शक्तिशाली भी बनें तो
• शक्ति का स्रोत हमारे अंदर है
• शक्तियों का अप्व्यय रोका जाए
• हम संयमी बनें, शक्ति का अप्व्यय न करें
• जीवन संग्राम में पुरुषार्थ की आवश्यकता
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |