Preface
नर- पशु से नर- नारायण
भारतीय धर्म के अनुसार मनुष्यों को दो बार जन्म लेने वाला होना चाहिए ।। एक बार जन्म सभी कीट- पतंगों और जीव- जन्तुओं का हुआ करता है ।। एक बार जन्म का अर्थ है- शरीर का जन्म ।। शरीर के जन्म का अर्थ है- शरीर से सम्बंधित रहने वाली इच्छाओं और वासनाओं, कामनाओं और आवश्यकताओं का विकास और उनकी पूर्ति ।। दूसरा जन्म है- जीवात्मा का जन्म, उद्देश्य का जन्म और परमात्मा के साथ आत्मा को जोड़ देने वाला जन्म ।। इसी का नाम मनुष्य है ।। जो मनुष्य पेट के लिए जिया, सन्तान उत्पन्न करने के लिए जिया, वासना और तृष्णा के लिए जिया; वो उसी श्रेणी में भावनात्मक दृष्टि से रखा जा सकता है, जिस श्रेणी में पशु और पक्षियों को रखा गया है, कीड़े और मकोड़ों को रखा गया है ।। कीड़े, मकोड़ों का भी उद्देश्य यही है- पेट पाले, बच्चा पैदा करे; दूसरा उनके सामने कोई लक्ष्य नहीं, कोई दिशा नहीं, कोई आकांक्षा नहीं, कोई उद्देश्य नहीं ।। जिन लोगों के सामने यही दो बातें हैं, उनको इसी श्रेणी में गिना जायेगा ।। चाहे वो विद्धान् हों, पढ़े- लिखे हों, लेकिन जिनका अन्तःकरण इन दो ही क्रियाओं के पीछे लगा हुआ है; दो ही महत्त्वाकांक्षाएँ हैं, उन्हें पशु योनि से आगे कुछ नहीं कह सकते; उनको नर- पशु कहा जायेगा ।।
Table of content
• विशेष अनुदान विशेष दायित्व
• नर-पशु से नर-नारायण
• दीक्षा क्या? किससे लें ?
• दीक्षा— एक शपथ-एक अनुबन्ध
• निर्मल-उदात्त जीवन की ओर
• द्विज का अर्थ - मर्म समझें
• दीक्षा के अंग-उपअंग
• प्रगति के कदम-प्रतिज्ञाएँ
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |