Preface
प्राण शक्ति को एक प्रकार की सजीव शक्ति कहा जा सकता है जो समस्त संसार में वायु, आकाश, गर्मी एवं ईथर,-प्लाज्मा की तरह समायी हुई है। यह तत्व जिस प्राणी में जितना अधिक होता है। वह उतना ही स्फूर्तिवान, तेजस्वी, साहसी दिखाई पड़ता है। शरीर में संव्यास इसी तत्त्व को जीवनीशक्ति अथवा ‘ओजस’ कहते हैं और मन में व्यक्त होने पर ही तत्त्व प्रतिभा ‘तेजस्’ कहलाता है। अपनी शक्ति क्षरण के द्वारा बंद कर लेने के कारण शारीरिक एवं मानसिक ब्रह्मचर्य साधने वाले साधकों को मनस्वी एवं तेजस्वी इसी कारण कहा जाता है। यह प्राणशक्ति ही है जो कहीं बहिरंग के सौंदर्य में, कहीं वाणी की मृदुलता व प्रखरता में, कहीं प्रतिभा के रूप में, कहीं कला-कौशल व कहीं भक्ति भाव के रूप में देखी जाती है। वस्तुतः प्राणशक्ति एक बहुमूल्य विभूति है। यदि इसे संरक्षित करने का मर्म समझा जा सके तो स्वयं को ऋद्धि-सिद्धि संपन्न-अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का स्वामी बनाया जा सकता है।
Table of content
• प्राण शक्ति:एक बहुमुल्य विभुति
• प्राण -चेतना का मर्म
• पाँच प्राण :पाँच देव
• प्राणवान बनने की प्रकिया
• प्राण शक्ति के अभिवर्धन द्वारा स्वास्थ्य-सर्म्वधन
• प्राण ऊर्जा का ज्वालमाल रुप में प्रकटीकरण
• प्राण तत्व के सदुपयोग को समझें और लाभ उठायें
• मानवीय विघुत के चमत्कार
• मेस्मेरिज्म क्या है?
• दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राण शक्ति से
• अतीन्द्रिय क्षमताओं का आधार
• अतीन्द्रिय शक्ति का विकास हर किसी के लिए सम्भव
• प्रसुप्त की जागृति द्वारा भविष्य -ज्ञान सम्भव है
• असामान्य और विलक्षण किंतु सम्भव और सुलभ
• दिव्य विभुतियों से ओत-प्रोत यह मानवी सत्ता
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
611 |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |