Preface
विवाह एक पवित्र बन्धन है। दो आत्माओं का मिलन है। इसके माध्यम से नर और नारी मिलकर एक परिपूर्ण व्यक्तित्व की, एक गृहस्थ संस्था की स्थापना करते हैं। किसी भी समाज में वर्जनाओं को बनाए रखने तथा नैतिक मूल्यों का आधार सुदृढ़ बनाने के लिए विवाह एक कर्त्तव्य बंधन के रूप में अनिवार्य माना जाता है। यह इस बंधन के शुभारंभ की, दाम्पत्य जीवन की शुरुआत की सार्वजनिक घोषणा है। स्वाभाविक है कि ऐसे प्रसंग पर सभी को प्रसन्नता हो, सभी कुटुम्बीजन सार्वजनिक रूप से अपने हर्ष की अभिव्यक्ति करें, इसीलिए हर्षोत्सव के रूप में एक संक्षिप्त-सा समारोह हर जाति, धर्म, सम्प्रदाय में ऐसे अवसरों पर मना लिया जाता है। विवाहोत्सव के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं पर हर्षाभिव्यक्ति के रूप में यह मनाया प्राय: सभी देशों-वर्गों में जाता है।
Table of content
1. भारतीय संस्कृति की अनुपम देन-विवाह संस्कार।
2. विवाह-संस्था को विकृतियों के जंजाल मे न डुबोयें।
3. दहेज के दानव का अन्त अब होना ही चाहिए।
4. खर्चीली शादियाँ दरिद्र और बेईमान बनाती है।
5. विवाहों के आदर्श और सिद्धान्त।
Author |
pt shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
381 |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |