Preface
मनुष्य उतना ही जानता है जितना कि उसे प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। शेष सारा अदृश्य जगत का सूक्ष्म स्तरीय क्रियाकलाप जो इस सृष्टि में हर पल घटित हो रहा है, उसकी उसे ग्रंथों-महापुरुषों की अनुभूतियों-घटना प्रसंगों के माध्यम से जानकारी अवश्य है, किन्तु उन्हें देखा हुआ न होने के कारण वह कहता पाया जाता है कि सब विज्ञान सम्मत नहीं है, अत: मात्र कोरी कल्पना है। विज्ञान की परिभाषा यदि सही अर्थों में समझ ली जाय तो धर्म, अध्यात्म को विज्ञान की एक उच्चस्तरीय उस विधा के रूप में माना जायगा जो दृश्य परिधि के बाद अनुभूति के स्तर पर आरम्भ होती है। इतना भर जान लेने या हृदयंगम कर लेने पर वे सारे विरोधाभास मिल जायेंगे जो आज विज्ञान और अध्यात्म के बीच बताए जाते हैं। परमपूज्य गुरुदेव अपनी अनूठी शैली में वाङ्मय के इस खण्ड में विज्ञान के विभिन्न पक्षों का विवेचन कर ब्राह्मी चेतना की व्याख्या तक पहुँचते हैं एवं तदुपरान्त इस सारी सृष्टि के खेल को उसी का क्रिया व्यापार प्रमाणित करके दिखा देते हैं। यही वाङ्मय के इस खण्ड का प्रतिपाद्य केन्द्र बिन्दु है।
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |