Preface
मनुष्य सर्वसमर्थ परमात्मा की सन्तान है। परमात्मा ने अपनी संतान को उन सभी विशेषताओं, विशिष्ट सामर्थों से अलंकृत कर दुनिया में भेजा है। जो विभूतियाँ स्वयं उसमें सन्निहित हैं, उसने मनुष्य के बीज रूप में वे सारी विशेषताएँ भर दी हैं। जिनके द्वारा इच्छानुसार प्रचंड समर्थता के आधार पर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सम्पन्न कर ले। वह अपने विकास के लिए न परिस्थितियों पर निर्भर है और न बाह्य साधनों पर अवलम्बित। अपनी इच्छाशक्ति और पुरुषार्थ के आधार पर वह स्वयं का इच्छित विकास करने और अभीष्ट उपलब्धियों को अर्जित करने में सर्वतः स्वतंत्र, स्वनिर्भर है। इस तथ्य को समझ लेने पर हर कोई देवत्य के विकासक्रम की पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।
Table of content
1. मनुष्य महान है।
2. व्यक्तित्व निर्माण के निमित्त विज्ञान के प्रयोग।
3. विकासवादी अवधारणा चेतनात्मक हो।
4. विभूतिवान बनाने वाली विद्या- आत्मिकी।
5. देवत्व का विकास।
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
518 |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |