Preface
व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज एवं समाज से राष्ट्र बनता है। अपनी समाज व्यवस्था पर आज सर्वतोमुखी अस्तव्यस्तता का साम्राज्य है। नीति-नियम और मर्यादा की कसौटी पर व्यक्ति के निजी चिन्तन-चरित्र को कसकर देखा जाय तो वह खरा कम, खोटा अधिक दिखाई देता है। पारस्परिक सहयोग और सद्भाव सामप्त-सा हो गया प्रतीत होता है। सम्पन्नता कुछ गिने-चुने लोगों के साथ में आयी है किन्तु वह अनीति से कमाई हुई प्रतीत होती है एवं चतुरता जो स्वार्थपरक है, वही बढ़ी-चढ़ी दिखाई देती है। सुविधा-साधनों की चमक-दमक चकाचौंध पैदा करती एवं कौतूहल बढ़ाती दिखाई देती है। वह ठोस आधार कहीं दिखाई नहीं देता, जिसे प्रगति का मूलभूत आधार कहते हैं। व्यक्ति का निजी जीवन और पारस्परिक व्यवहार उच्च आदर्शों पर आधारित न होकर जब परिस्थितियों पर टिका होगा, समाज परावलम्बी ही बना रहेगा तथा उसका प्रगति-समृद्धि की दिशा में वांछित उत्थान कर पाना नितान्त असंभव ही प्रतीत होगा।
Table of content
1. समस्याएँ अनेक-हल एक।
2. अनाचार से कैसे निपटे।
3. हमारा लोकतंत्र सशक्त और समर्थ कैसे बने?
4. व्यक्तिवाद नहीं-समूहवाद।
5. राष्ट्रीय प्रगति के कुछ अनिवार्य मापदण्ड।
Author |
pt shriram sharma acharya |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
456 |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |