Preface
काव्य में लालित्य होता है । एक अनोखी मिठास होती है । जो बात गद्य के बड़े-बड़े ग्रंथ नहीं कह पाते, वह पद्य की दो पंक्तियों कह जाती हैं । इतनी गहराई तक प्रवेश करती हैं कि सीधे अंतःकरण को छूती हैं । यही कारण है कि साहित्य में भाव- संवेदनाएँ संप्रेषित करने हेतु सदा काव्य का प्रयोग होता है । वेदव्यास भी ज्ञान का संचार जो उन्हें योगेश्वर से मिला गीता के श्लोकों के द्वारा देववाणी में देते हैं और ठेठ देशी अवधी भाषा में श्रीराम का चरित्र तुलसीदासजी देते हुए नीति का सारा संदेश दे जाते है । महावीर प्रसाद गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी आदि अपनी इसी गहराई तक संदेश देने की कला-विधा के द्वारा जन-जन में सराहे गए ।
ऐसे कई गीत हैं, मुक्तक हैं, जो प्रकाशित भी हुए कई अप्रकाशित हैं । अनगिनत गीतकारों ने लिखे हैं । उन्हें शांतिकुंज की फाइलों में सुरक्षित रखा गया था । वहाँ से निकालकर उसे जन-जन तक पहुँचाने का कार्य इन आठ खंडों के द्वारा किया जा रहा है । इन्हें बाक़ायदा श्रमपूर्वक वर्गीकृत किया गया है । इससे विषय चुनने वालों को पढ़ने में आसानी होगी । इसमें वे ही गीत लिए हुए हैं, जिन पर आचार्यश्री के चिंतन का स्पष्ट प्रभाव है अथवा उनकी प्रेरणा से जिनको सृजा गया । स्थान-स्थान पर गीतों में पाठक देखेंगे कि आचार्यश्री के दर्शन की, उनकी शतसूत्री युग निर्माण योजना की, उनके स्वप्निल भावी विश्व की, सतयुग की वापसी की झलक है । यह विशेषता देश में कहीं भी, किसी भी रचनाकार के पास, खंड काव्य में अथवा विश्वकोश में उपलब्ध नहीं होगी ।
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Dimensions |
20 cm x 27 cm |