Preface
किसी वस्तु के संबंध में विचार करने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी कोई मूर्ति हमारे मन:क्षेत्र में हो। बिना कोई प्रतिमूर्ति बनाये मन के लिए किसी भी विषय में सोचना असंभव है। मन की प्रक्रिया ही यही है कि पहले वह किसी वस्तु का आकार निर्धारित कर लेता है, तब उसके बारे में कल्पना शक्ति काम करती है। समुद्र भले ही किसी ने न देखा हो, पर जब समुद्र के बारे में कुछ सोच-विचार किया जाएगा, तब एक बड़े जलाशय की प्रतिमूर्ति मन: क्षेत्र में अवश्य रहेगी। भाषा-विज्ञान का यही आधार है। प्रत्येक शब्द के पीछे आकृति रहती है। ‘‘कुत्ता’’ शब्द जानना तभी सार्थक है, जब ‘कुत्ता’ शब्द उच्चारण करते ही एक प्राणी विशेष की आकृति सामने आ जाए। न जानी हुई विदेशी भाषा को हमारे सामने कोई बोले तो उसके शब्द कान में पड़ते हैं, पर वे शब्द चिड़ियों के चहचहाने की तरह निरर्थक जान पड़ते हैं। कोई भाव मन में उदय नहीं होता है। कारण यह है कि शब्द के पीछे रहने वाली आकृति का हमें पता नहीं होता। जब तक आकृति सामने न आए, तब तक मन के लिए असम्भव है कि उस संबंध में कोई सोच विचार करे।
Table of content
• गायत्री तत्वदर्शन
• गायत्री मंत्र के परम सामर्थ्यवान २४ अक्षर
• यह रत्न भण्डार किसे मिलेगा
• गायत्री और उसकी पृष्ठभूमि
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2012 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |