Preface
गायत्री मंत्र के शब्दार्थ से प्रकट है कि यह मनुष्य में सन्निहिति प्राणतत्त्व का अभिवर्धन, उन्नयन करने की विद्या है। ‘गय’ अर्थात् प्राण। ‘त्री’ अर्थात् त्राण करने वाली जो प्राणों का परित्राण, उद्धार संरक्षण करें वह गायत्री। मंत्र शब्द का अर्थ-मनन, विज्ञान, विद्या, विचार होता है। गायत्री मंत्र अर्थात् प्राणों का परित्राण करने की विद्या।
गायत्री मंत्र का दूसरा नाम ‘तारक तंत्र’ भी है। साधना ग्रन्थों में उसका उल्लेख तारक तंत्र के नाम से भी हुआ है। तारक अर्थात् पार कर देने वाला। तैरा कर पार निकाल देने वाला। गहरे जल प्रवाह को पार करके निकल जाने को-डूबते हुए बचा लेने को तारना कहते हैं। यह भवसागर ऐसा ही है, जिसमें अधिकांश जीव डूबते हैं। तरते तो कोई विरले हैं।
जिस साधन से तरना संभव हो सके उसे ‘तारक’ कहा जाएगा। गायत्री मंत्र में यह सामर्थ्य है उसी से उसे ‘तारक मंत्र’ कहा जाता है।
Table of content
• गायत्री द्वारा प्राण शक्ति का अभिवर्धन्
• गायत्री की प्राण-प्रक्रिया
• गायत्री का तत्त्वज्ञान और अवगाहन
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |