Preface
उपनिषद् में उप और नि उपसर्ग हैं । सद् धातु गति के अर्थ में प्रयुक्त होती है। गति शब्द का उपयोग ज्ञान, गमन और प्राप्ति इन तीन संदर्भो में होता है । यहाँ प्राप्ति अर्थ अधिक उपयुक्त है । उप सामीप्येन, नि-नितरां, प्राम्नुवन्ति परं ब्रह्म यया विद्यया सा उपनिषद अर्थात् जिस विद्या के द्वारा परब्रह्म का सामीप्य एवं तादात्म्य प्राप्त किया जाताहै, वह उपनिषद् है ।
Table of content
क. संकेत विवरणख.
भूमिका
१. अमृतनादोपनिषद्
२. ईशावास्योपनिषद्
३. एकाक्षरोपनिषद्
४. ऐतरेयोपनिषद्
५. कठोपनिषद्
६. केनोपनिषद्
७. गायत्र्युपनिषद्
८. छान्दोग्योपनिषद्
९. तैत्तिरीयोपनिषद्
१०. नादबिन्दूपनिषद्
११. निरालम्बोपनिषद्
१२. प्रणवोपनिषद्
१३. प्रश्नोपनिषद्
१४. बृहदारण्यकोपनिषद्
१५. मन्त्रिकोपनिषद्
१६. माण्डूक्योपनिषद्
१७. मुण्डकोपनिषद्
१८. मुदालोपनिषद्
१९. मैत्रायण्युपनिषद्
२०. शिवसंकल्पोपनिषद्
२१. शुकरहस्योपनिषद्
२२. श्वेताश्वतरोपनिषद्
२३. सर्वसारोपनिषद्
२४. स्कन्दोपनिषद्
परिशिष्ट
१. परिभाषा कोश
२. मन्त्रानुक्रमणिका
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2010 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
512 |
Dimensions |
255mm X192mm X 25mm |