Preface
ईश्वर विश्वास पर ही मानव प्रगति का इतिहास टिका हुआ है। जब यह डगमगा टिका हुआ है। जब यह डगमगा जाता है तो व्यक्ति इधर-उधर हाथ-पाँव फेंकता विक्षुब्ध मन:स्थिति को प्राप्त होता दिखाई देता है। ईश्वर चेतना की वह शक्ति है जो ब्राह्मण के भीतर और बाहर जो कुछ है, उस सब में संव्याप्त है। उसके अगणित क्रिया-कलाप हैं जिनमें एक कार्य प्रकृति का- विश्व व्यवस्था संचालन भी है। संचालक होते हुए भी वह दिखाई नहीं देता क्योंकि वह सर्वव्यापी सर्वनियन्ता है। इसी गुत्थी के कारण की वह दिखाई क्यों नहीं देता, एक प्रश्न साधारण मानव के मन में उठता है- ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है ?
Table of content
1. आस्तिकता आवश्यक ही नहीं,अनिवार्य भी
2. आस्तिकता की उपयोगिता और आवश्यकता
3. हम सच्चे अर्थों में आस्तिक बनें
4. उपासना अर्थात् ईश्वर के निकट बैठना
5. ईश्वर-विश्वास क्यों ? किसलिए ?
6. ईश्वर कौन है? कहाँ है ? कैसा है ?
7. विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व
8. ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग
9. ईश्वर और उसकी अनुभूति
10. भक्ति योग का व्यावहारिक स्वरूप
11. प्रेम ही परमेश्वर है
Author |
Brahmavarchasv |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Page Length |
618 |
Dimensions |
205X273X25 mm |