Preface
प्रस्तुत चौथा खंड जिस विषय वस्तु को लेकर लिखा गया, उसके संबंध में बहुसंख्य व्यक्ति अनभिज्ञ हैं अथवा उसकी गरिमा को भुला देने के कारण यह प्रकरण विस्मृति के गर्त में चला गया है । देवसंस्कृति के विभिन्न पक्षों यज्ञा-वर्णाश्रम धर्म, पर्व-संस्कार, तीर्थटन-परिव्रज्या एवं मरणोत्तर जीवन आदि के संबंध में जनमानस में कई प्रकार की भ्रांतियाँ हैं । उनको प्रस्तुत ग्रंथ में यथा संभव स्पष्ट करते हुए, उन्हें कथा प्रसंगों एवं शास्त्र माहात्म्य के साथ जोड़ा गया है । इन सभी विषयों की वैज्ञानिकता का प्रतिपादन भी इस खंड की विशेषता है । आस्था संकट की इस वेला में सांस्कृतिक पुनर्जागरण हेतु क्या व कैसे किया जाना चाहिए, ग्रंथ के अंतिम दो अध्याय इसी से संबंधित हैं ।
लोक शिक्षण के लिए गोष्ठियों-समारोहों में प्रवचनों-वत्कृताओं की आवश्यकता पड़ती है । उन्हें दार्शनिक पृष्ठभूमि पर कहना ही नहीं, सुनना-समझना भी कठिन पड़ता है । फिर उनका भण्डार जल्दी ही चुक जाने पर वक्ता को पलायन करना पड़ता है । उनकी कठिनाई का समाधान इस ग्रन्थ से ही हो सकता है । विवेचनों, प्रसंगों के साथ कथानकों का समन्वय करते चलने पर वक्ता के पास इतनी बड़ी निधि हो जाती है कि उसे महीनों कहता रहे । न कहने वाले पर भार पड़े, न सुनने वाले ऊबें । इस दृष्टि से युग सृजेताओं के लिए लोक शिक्षण का एक उपयुक्त आधार उपलब्ध होता है । प्रज्ञा पीठों और प्रज्ञा संस्थानों में तो ऐसे कथा प्रसंग नियमित रूप से चलने ही चाहिए ।
Table of content
प्राक्कथन
प्रथम अध्याय- देवसंस्कृति-जिज्ञासा प्रकरणम्
द्वितीय अध्याय- वर्णाश्रम-धर्म प्रकरणम्
तृतीय अध्याय- संस्कार-पर्व माहात्म्य प्रकरणम्
चतुर्थ अध्याय- तीर्थ-देवालय प्रकरणम्
पंचम अध्याय- मरणोत्तर जीवन प्रकरणम्
षष्ठ अध्याय- आस्था-संकट प्रकरणम
सप्तम अध्याय- प्रज्ञावतारप्रकरणम्
वंदना परिशिष्ट
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
312 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |