Preface
गायत्री-मंत्र के प्रारंभ में ऊँ लगाया जाता है । ऊँ परमात्मा का प्रधान नाम है । ईश्वर को अनेक नामों से पुकारा जाता है । एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति उस एक ही परमात्मा को ब्रह्मवेत्ता अनेक प्रकार से कहते हैं । विभिन्न भाषाओं और संप्रदायों में उसके अनेक नाम हैं । एक-एक भाषा में ईश्वर के पर्यायवाची अनेक नाम हैं फिर भी वह एक ही है । इन नामों में ऊँ को प्रधान इसलिए माना है कि प्रकृति की संचालक सूक्ष्म गतिविधियों को अपने योग-बल से देखने वाले ऋषियों ने समाधि लगाकर देखा है कि प्रकृति के अंतराल में प्रतिक्षण एक ध्वनि उत्पन्न होती है जो ऊँ शब्द से मिलती-जुलती है । सूक्ष्म प्रकृति इस ईश्वरीय नाम का प्रतिक्षण जप और उद्घोष करती है इसलिए अकृत्रिम, दैवी,स्वयं घोषित, ईश्वरीय नाम सर्वश्रेष्ठ कहा गया है । आस्तिकता का अर्थ है-सतोगुणी, दैवी, ईश्वरीय, पारमार्थिक भावनाओं को हृदयंगम करना । नास्तिकता का अर्थ है-तामसी, आसुरी, शैतानी, भोगवादी, स्वार्थपूर्ण वासनाओं में लिप्त रहना । यों तो ईश्वर भले-बुरे दोनों तत्त्वों में है पर जिस ईश्वर की हम पूजा करते हैं, भजते हैं ।
Table of content
• ॐ- ईश्वरीय सत्ता का तत्त्व-ज्ञान
• भू:-सर्वत्र अपना ही प्राण बिखरा पड़ा है
• भुव:-कर्मयोग की शिक्षा
• स्व:-स्थिरता और स्वस्थता का संदेश
• तत्-मृत्यु से मत डरिए
• सवितु:-शक्तिशाली एवं तेजस्वी बनिए
• वरेण्यं-अच्छाई को ही ग्रहण कीजिए
• भर्गो-निष्पाप बनने की प्रेरणा
• देवस्य-देवत्व का अवलंबन कीजिए
• धीमहि-दैवी संपत्तियों का संचय कीजिए
• धियो-विवेक का अनुशीलन
• यो न:-आत्मसंयम और परमार्थ का मार्ग
• प्रचोदयात्-प्रोत्साहन की आवश्यकता
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |