Preface
कहा जाता है- "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।" यह साधारण-सी लोकोक्ति एक असाधारण सत्य को प्रकट करती है और वह है-मनुष्य के मनोबल की महिमा । जिसका मन हार जाता है, वह बहुत कुछ शक्तिशाली होने पर भी पराजित हो जाता है और शक्ति न होते हुए भी जो मन से हार नहीं मानता, उसको कोई शक्ति पराजित नहीं कर सकती ।
मनुष्य की वास्तविक शक्ति मनोबल ही है । मनोबल से हीन मनुष्य को निर्जीव ही समझना चाहिए । संसार के सारे कार्य शरीर द्वारा ही संपादित होते हैं, किंतु उसका संचालक मन ही हुआ करता है । मन का सहयोग पाए बिना शरीर-यंत्र उसी प्रकार निष्क्रिय रहा करता है, जैसे बिजली के अभाव में सुविधा-उपकरण अथवा मशीनें आदि । बहुत बार देखा जा सकता है कि साधन-शक्ति तथा आवश्यकता होने पर भी जब मन नहीं चाहता तो अनेक कार्य बिना किए पड़े रहते हैं । शरीर के अक्षत रहते हुए भी मानसिक सहयोग के बिना कोई काम नहीं बनता और जब मन चाहता है तो एक बार रुग्ण शरीर भी कार्य में प्रवृत्त हो जाता है । जो काम मन से किया जाता है वह अच्छा भी होता है, और जल्दी भी । बेमन किए हुए काम न केवल अकुशल ही होते हैं, बल्कि बुरी तरह शिथिल भी कर देते हैं । मनोयोग रहने से मनुष्य न जाने कितनी देर तक बिना थकान अनुभव किए कार्य में संलग्न रहा करता है, किंतु मन के उचटते ही जरा भी काम करने में मुसीबत आ जाती है । इस प्रकार देखा जा सकता है कि मनुष्य का वास्तविक बल, मनोबल ही है ।
Table of content
• मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
• मन को साधिए
• सेवा का सबसे बड़ा अधिकारी हमारा मन
• मनोभावों पर जीवन का विकास निर्भर है
• दृढ़ मनोभावों से जीवन निर्माण
• मनः शक्ति की प्रचंड क्षमता
• मन में संकल्प जगाइए , आप में बड़ी शक्ति है
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
120x181x1 mm |