Preface
साधना-उपासना यदि तन्मयतापूर्वक की जा सके, जीवन को यदि सही ढंग से साधा जा सके तो निश्चित ही सिद्धियाँ करतलगत की जा सकती है, यह एक सुनिश्चति तथ्य है। साधना का शुभारंभ करने वाले उस तथ्य को बिना जाने ही इस क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, इसीलिए दिग्भ्रान्त हो जाते हैं। सिद्धि का मार्ग जिस धरातल पर विनिर्मित होता है, वह जीवन की परिष्कृति के रूप में सर्वप्रथम दृष्टिगोचर होता है। सतों-के-सद्गुरु के इष्ट के अनुदान इस से कम में नहीं मिलते कि व्यक्ति अपने आपे को साधकर अपनी श्रद्धा का आरोपण आदर्शों के प्रति पहले करे।
अनेकानेक व्यक्ति योग व तप दो शब्दों के मामलों में साधना के चर्चा के प्रसंग में भ्रमग्रस्त देखे जाते हैं। योग के साथ भी साधना जुड़ी है व तपके साथ भी। तप- तितिक्षा अपने पर कष्टों के नियंत्रण रखने का अभ्यास करने के लिए, कुकर्मों का परिशोधन करने व प्रायश्चित्य के निमित्त की जाती है। योग-साधना आत्म-सत्ता व परमात्म् सत्ता के मिलन संयोग के निमित्त विभिन्न माध्यमों—जप, नाद, त्राटक, ध्यान, सोऽहं, आत्मदेव की साधना आदि उपक्रमों के माध्यम से सम्पन्न की जाती है। ज्ञान व भक्ति दोनों का ही इस योग में समावेश है, जो कर्म करते हुए संपन्न किया जाता है। भक्ति का अर्थ है समर्पण-ज्ञान का अर्थ है निदिध्यासन। यदि वस्तुतः योग व्यकि्त से सध रहा है तो कोई कारण नहीं कि व्यक्ति साधना की उच्चतर पृष्ठभूमि पर न पहुँच पाए। तप व योग दोनों ही श्रेष्ठ तम मार्ग हैं व साथ-साथ किए जा सकते हैं किंतु फिर भी दोनों में योग को भगवान कृष्ण ने गीता में ‘‘तपस्विभ्योऽधिको योगी’’ कहकर अधिक महत्त्वपूर्ण माना है ।
Table of content
1. ‘साधना से सिद्धि’ सिद्धांत का पर्यवेक्षण
2. योग और तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
3. अन्तःशक्ति के उभार और चमत्कार
4. साधना के विविध स्तर एवं पक्ष
5. सर्वोपयोगी सुलभ साधनाएँ
6. शक्ति एवं संदेश संचार की साधना
7. हिप्नोटिज्म एवं वशीकरण की सच्ची सिद्धि
8. पराकाया :प्रवेश की साधना
9. दिव्य दृष्टि का संचार स्रोत
10. सामान्य एवं विशिष्ट फलदायी साधनाएँ
11. चमत्कारी, किन्तु सर्वथा हानि रहित विशेष साधनाएँ
Author |
Brahmvarchasva |
Publication |
Akhand Jyoti Santahan, Mathura |
Publisher |
Janjagran Press, Mathura |
Page Length |
637 |
Dimensions |
205X276X21 mm |