Preface
मनुष्य ने सृष्टि के समस्त प्राणियों की तुलना में वरिष्ठता पाई है। शरीर- संरचना और मानसिक- मस्तिष्कीय विलक्षणता के कारण उसने सृष्टि के समस्त प्राणियों की तुलना में न केवल स्वयं को सशक्त, समुन्नत सिद्ध किया है; वरन् वह ऐसी सम्भावनाएँ भी साथ लेकर आया है, जिनके सहारे अपने समुदाय को, अपने समग्र वातावरण एवं भविष्य को भी शानदार बना सके। यह विशेषता प्रयत्नपूर्वक उभारी जाती है। रास्ता चलते किसी गली- कूचे में पड़ी नहीं मिल जाती। इस दिव्य विभूति को प्रतिभा कहते हैं। जो इसे अर्जित करते हैं, वे सच्चे अर्थों में वरिष्ठ- विशिष्ट कहलाने के अधिकारी बनते हैं, अन्यथा अन्यान्य प्राणी तो, समुदाय में एक उथली स्थिति बनाए रहकर किसी प्रकार जीवनयापन करते हैं।
मनुष्य, गिलहरी की तरह पेड़ पर नहीं चढ़ सकता। बन्दर की तरह कुलाचें नहीं भर सकता। बैल जितनी भार वहन की क्षमता भी उसमें नहीं है। दौड़ने में वह चीते की तुलना तो क्या करेगा, खरगोश के पटतर भी अपने को सिद्ध नहीं कर सकता। पक्षियों की तरह आकाश में उड़ना उसके लिए सम्भव नहीं, न मछलियों की तरह पानी में डुबकी ही लगा सकता है। अनेक बातों में वह अन्य प्राणियों की तुलना में बहुत पीछे है; किन्तु विशिष्ट मात्रा में मिली चतुरता, कुशलता के सहारे वह सभी को मात देता है और अपने को वरिष्ठ सिद्ध करता है।
Table of content
1. सर्वोपरि उपलब्धि-प्रतिभा
2. प्रतिभा से बढ़कर और कोई समर्थता है नहीं
3. परिष्कृत प्रतिभा, एक दैवी अनुदान-वरदान
4. प्रचंड मनोबल की प्रतिभा में परिणति
5. आगे बढ़ें और लक्ष्य तक पहुँचें
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |