Preface
सृष्टि-सञ्चालन के सार्वभौम नियमों के अनुसार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहना स्वाभाविक बात है दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है। वर्षा के बाद शरद और उसके पश्चात ग्रीष्मऋतु का आना भी निश्चय प्राय ही होता है। सूर्य चंद्र एवं अन्य ग्रह भी एक नियमबद्ध गति में चलते हैं। इसी तरह मानव जीवन भी इस सार्वभौम नियमों के अंतर्गत सदैव एक सा नहीं रहता। मनुष्य की इच्छा हो या न हो परन्तु जीवन में परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आती ही रहती हैं। आज उतार है तो कल चढ़ाव। चढ़े हुए गिरते हैं और गिरे हुए उठते हैं।
जीवन में परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आते जाते रहना नियति चक्र का सहज स्वाभाविक नियम है। इनसे बचा नहीं जा सकता, इन्हैं टाला नहीं जा सकता।
Table of content
• कठिनाइयाँ क्या हैं ?
• जीवन में कठिनाईयाँ भी आवश्यक हैं
• कठिनाईयों का भी स्वागत करें
• आपत्तियों से डरिये नहीं, लडि़ये
• दुःखों का भी सामना कीजिए
• हमें तू दुःख दे दयानिधान
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2014 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |