Preface
मनुष्य के शरीर विश्लेषण करके देखा जाय तो पता चलेगा कि पुरुष और नारी का भेदभाव स्थूल शरीर तक ही है। दोनों के मूल में काम करने वाली चेतना शक्ति में कोई तात्विक भेद नहीं है। दोनों में सामान विचार शक्ति काम करती है। दोनों को सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरण की अनुभूति होती है। जैसी इच्छाएं, आकांक्षाएं पुरुष की हो सकती हैं। कम-ज्यादा वैसी ही इच्छाएं और अनुभूतियाँ स्त्री भी होती है। आत्मिक दृष्टी से दोनों में कोई भेद नहीं, अंतर केवल भावना और शरीर के कुछ अवयवों भर का है।
गायत्री भी एक प्रकार की ईश्वरीय चेतना है। वह नारी है, न नर है। फिर भी उसे शास्त्रों में माता और जननी कहकर ही सम्बोधित किया गया है। यह पढ़कर कुछ कौतूहल अवश्य होता है, पर उसमे कुछ गलत नहीं है। गायत्री महाशक्ति के स्वरुप और रहस्य को समझने के बाद इस विभेद का अंतर समझ आ जाएगा।
Table of content
• गायत्री महाशक्ति का स्वरुप और रहस्य
• गायत्री का स्त्री स्वरुप क्यों ?
• गायत्री माता का परिचय
• परमात्मा की कार्यकर्त्री देवशक्ति
• विभूतियों का भण्डागार
• रहस्यों को जानना आवश्यक है
• तीन चरणों की अनंत सामर्थ्य
• मंगलमयी मधु विद्या
• अंतर्गत के गुप्त तत्त्व
• नारी के प्रति पूज्य भावना
• पिता से माता अधिक उदार
Author |
pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |