Preface
भविस्य अविज्ञात है, उसके सम्बन्ध में समय से पूर्व कुछ नहीं कहा जा सकता। नियति का ऐसा कोई निर्धारण नहीं है कि अमुक घटना कब अमुक प्रकार से घटित होगी ? परिस्थितयों के अनुसार भविष्य की कल्पनाएं अथवा संभावनाएं उलटी भी हो सकती हैं।
भविष्य के सम्बन्ध में इतनी अनिश्चितता होते हुए भी उसकी कल्पना करना और संभावित परिणाम की उपेक्षा करना- एक प्रकार से अनिवार्य ही है क्योंकि इसके बिना न तो कोई योजना बन सकती है और न कुछ कार्य आरम्भ किया जा सकता है। हानि उठाने और असफल होने के लिए भला कोई क्या और क्यों कुछ काम आरम्भ करेगा।
Table of content
1) आधुनिक सभ्यता की देन
2) अणु विस्फोट से भयंकर जनसंख्या वृद्धि
3) विनाश संकट के गहराते बादल
4) जनसँख्या समाधान के हास्यास्पद प्रयास
5) विलासिता कहाँ ले जाकर छोड़ेगी
6) समस्या के रचनात्मक समाधान
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
96 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |