Preface
भारत एक देश नहीं, मानवी उत्कृष्टता एवं संस्कृति का उद्गम केंद्र है ।। हिमालय के शिखरों पर जमा बर्फ जल धारा बनकर बहता है, अपनी शीतलता और पवित्रता से एक सुविस्तृत भू- भाग को सरसता एवं हरीतिमा युक्त कर देता है ।। भारतवर्ष धर्म और अध्यात्म का उदयांचल है, जहाँ से सूर्य उगता और सारे भूमंडल को आलोक से भर देता है ।। प्रकारांतर से यह आलोक ही जीवन है जिसके सहारे वनस्पतियाँ उगतीं, घटाएँ बरसतीं और प्राणियों में सजीवता की हलचलें होती हैं ।। "डार्विन" ने अपने प्रतिपादन में मानव को बंदर की औलाद कहा है ।। सचमुच यही स्थिति व्यवहार में रही होती यदि नीतिमत्ता, मर्यादा सामाजिकता सहकारिता उदारता जैसे सदगुण उसमें विकसित न हुए होते ।।
बीज में वृक्ष की समस्त विशेषताएँ सूक्ष्म रूप से विद्यमान रहती हैं, किंतु" वे स्वत: विकसित नहीं हो पाती ।। वे प्रसुप्त ही पड़ी रहतीं, यदि अनुकूल परिस्थितियों न मिलतीं ।। प्रयत्नपूर्वक उसें अंकुरित, विकसित करके विशाल बनने की स्थिति तक पहुँचाना पड़ता है ।। मनुष्य के संबंध में भी तकरीबन यही बात है ।। सृष्टा ने उसे सृजा तो अपने हाथों से ही है एवं असीम संभावनाओं से परिपूर्ण भी बनाया है, पर साथ ही इतनी कमी भी छोड़ी है कि विकास के प्रयत्न बन पड़े, तो ही समुन्नत स्तर तक पहुँचने का अवसर मिलेगा ।।
Table of content
1. भारतीय संस्कृति उत्कृष्टता का केंद्र बिंदु
2. देव संस्कृति को पुनर्जीवित किया जाय
3. अपनी सांस्कृतिक गरिमा धूमिल न होने पाए
4. नव निर्माण में देव संस्कृति की भूमिका
5. सांस्कृतिक पुनुरुत्थान युग की परम आवश्यकता
6. एक चुनौती हर भारतीय धर्मानुयायी के लिए
7. अध्यात्म के प्रति बढ़ती विश्व अभिरुचि को सही दिशा मिले
Author |
Brahmvarchas |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Press, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
64 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |