Preface
युग परिवर्तन की महती आवश्यकता की पूर्ति के लिए भावनाशील व्यक्तियों के प्रबल पुरुषार्थ के साथ उठ खड़े होने का ठीक यही समय है । बढ़ती हुई दुष्प्रवृत्तियों का प्रवाह इतना प्रचंड है कि यथास्थिति बनाए रहना किसी भी दृष्टि से वांछनीय नहीं । जनमानस में विकृत्तियाँ इस कदर बढ़ती जा रही हैं कि उनके विद्रूप विस्फोट कभी भी विपत्ति खड़ी करके रख देंगे । अपराधों की दुष्प्रवृत्तियाँ प्रत्यक्ष और परोक्ष स्तर पर इतनी बढ़ती जा रही हैं कि अब किसी घोषित सदाचारी के भी छद्म-दुराचारी होने की आशंका रहती है । लगता है कि चरित्र निष्ठा कोई तथ्य न रहकर वाक्-विलास की, परस्पर उपदेश करने में काम आने वाली चर्या बनकर रह गई है । एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति अविश्वास चरम सीमा तक बढ़ता जा रहा है । पति और पत्नी के बीच की गई पवित्र प्रतिज्ञाएँ एक मखौल जैसी बन गई हैं । कामुक दृष्टि की प्रधानता के कारण पवित्र विवाह संस्था का लगभग दम ही घुट चला है । पिता-पुत्र के संबंध नाम मात्र के रह गए हैं । असंयमी मनुष्य अहर्निश अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारता रहता है । नशेबाजी से अब कोई बिरला ही बचा है । मनोविकारों की तो हद ही हो गई है ।
Table of content
1. क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें ?
2. आज की आवश्यकता
3. वानप्रस्थ की महिमा
4. वर्णाश्रम धर्म की महान पृष्ठभूमि
5. व्यक्ति और समाज का अभिनव निर्माण
6. सामाजिक दृष्टि से भी वानप्रस्थ का महत्व
7. लोककल्याणकारी संस्थाओं की स्थिति
8. जनता की स्थिति शोचनीय
9. वानप्रस्थ से लोकसेवक नेतृत्व
10. भावनाशील राष्ट्र-निर्माण में जुटें
11. लोकसेवियों का अभाव नहीं प्रशिक्षण की जरूरत है
12. वानप्रस्थ के तीन स्तर
13. लकीर के फकीर न रहें
14. आस्थाहीन व्यक्ति-वानप्रस्थी नहीं बनें
15. हम समाजद्रोही न बनें
16. मिशन संस्थाएं, उद्देश्यहीन न बनें
17. मिशनरियों की आवश्यकता
18. वानप्रस्थ संन्यास का सही स्वरुप समझा जाए
19. महिला वानप्रस्थों की आवश्यकता
20. नारी जागरण का नेतृत्व नारी संभाले
21. महिलाएं अधिकाधिक वानप्रस्थी बनें
22. विधवाओं, परित्यक्ताओं के लिए स्वर्णिम अवसर
23. समयदानी वानप्रस्थी
24. कहाँ, कैसे, कब और क्या करना होगा ?
25. कौन वानप्रस्थ-क्षेत्र में प्रवेश न करें
26. अर्थ-संपन्न व्यक्ति सहयोगी बनें
27. युग निर्माण परिवार के वानप्रस्थ क्या करेंगे ?
28. नर रत्नों की आवश्यकता
29. अति उपयोगी कार्य जनसंपर्क से ही संभव होंगे
30. विश्व कल्याण हेतु अग्रसर हों
31. समाज ऋण चुकाने में पीछे न रहें
32. मानव समाज को पतित होने से बचाएं
33. वानप्रस्थियों द्वारा समाज सेवा के कार्य
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |