Preface
युग निर्माण योजना की विचार क्रांति के अंतर्गत व्यक्ति और समाज दोनों के भावनात्मक नवनिर्माण की पुण्य प्रक्रिया जुड़ी हुई है । इस दिशा में पिछले दिनों आशाजनक प्रगति भी हुई है । अवांछनीयता को मिटाना और औचित्य की स्थापना करना यही इस आंदोलन की कार्य पद्धति है । इस प्रयोजन के लिए सामूहिक संगठन, रचनात्मक एवं संघर्षात्मक कार्यक्रम, उत्कृष्ट विचारों का परिष्कार करने वाली शिक्षा पद्धति एवं कला के माध्यम से जनमानस के परिष्कार परिवर्तन की प्रक्रिया भी अपने ढंग से चल रही है । सब मिलाकर जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में यह आशा की जा सकती है कि मनुष्य में देवत्व का अवतरण और पृथ्वी पर स्वर्ग की आभा का दर्शन असंभव न रह जाएगा ।
कला क्षेत्र के अंतर्गत नव निर्माण की विचारधारा को व्यापक बनाने के लिए चित्रकारिता का माध्यम भी अपनाया जाता था, सो उस प्रयोजन के लिए प्रस्तुत पुस्तक एक उपयोगी कदम सिद्ध होगी । इन चित्रों के माध्यम से शिक्षित- अशिक्षित, बाल-वृद्ध, नर- नारी सभी को मानव समाज की कुत्साओं और कुंठाओं को समझाया जा सकेगा, ऐसी आशा है । चित्र मनोरंजन के साथ-साथ भावोत्पादक एवं तथ्य को हृदयंगम कराने वाले सिद्ध हो रहे हैं । अश्लील और कुरुचिपूर्ण चित्रों से आज बाजार भरा पड़ा है । उनके प्रभाव से जनमानस में कामुकताजन्य अनेक दुष्प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हुई हैं और उसके अनेक दुष्परिणाम सर्वसाधारण को भुगतने पड़ रहे हैं । कला के दुरुपयोग का जो परिणाम हो सकता है, वह सघन अंधकार के रूप में सब ओर प्रस्तुत है ।
Table of content
1. भागीरथ का तप और गंगावतरण
2. बुद्धं शरणं गच्छामि
3. परशुराम द्वारा अत्याचारियों का शिरोच्छेदन
4. संघ शक्ति का प्रतीक दुर्गावतरण
5. भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सामूहिक श्रम की प्रतिष्ठा
6. उर्मिला द्वारा लक्ष्मण को कर्त्तव्य पालन की प्रेरणा
7. भक्ति शबरी की सार्थक हुई
8. सुकन्या का प्रायश्चित
9. उपगुप्त का आत्म-अभिसार
10. सच्ची आस्तिकता ने वाल्मीकि को संत बनाया
11. कर्त्तव्यपालन में हरिश्चंद्र की आदर्श-निष्ठा
12. प्रह्लाद ने लोभी पिता का बहिष्कार किया
13. विभीषण द्वारा अन्यायी रावण से असहयोग
14. जटायु द्वारा अनीति से संघर्ष
15. राजा जनक ने श्रम की महत्ता बढ़ाई
16. वसिष्ठ और चाणक्य का राजसत्ता पर अंकुश
17. लोकमंगल के लिए शंकराचार्य का तितीक्षा तप
18. निवेदिता द्वारा पीड़ित मानवता के लिए त्याग
19. समर्थ गुरु रामदास ने लौकिक सुख त्यागे
20. गुरु गोविंदसिंह द्वारा संत व गृहस्थ का समन्वय
21. पन्नाधाय ने कर्त्तव्य और विश्वास की रक्षा की
22. संपत्ति भामाशाह की सार्थक हुई
23. बा और बापू की गरीबी का आदर्श
24. अशिक्षा के मोर्चे पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
80 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |