Preface
गायत्री त्रिगुणात्मक है। उसकी उपासना से जहाँ सत्तत्त्व की वृद्धि होकर आत्मशक्ति का विकास होता है, वहाँ कल्याणकारी और हितकारी रजोगुण की भी अभिवृद्धि होती है। इसके फल से मनुष्य में
रजोगुणी आत्मबल बढ़ता है और ऐसी गुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो जाती है जो सांसारिक जीवन-संघर्ष में अनुकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं। उत्साह, साहस, स्फूर्ति, निरालस्यता, आशा, दूरदर्शिता, तीव्र बुद्धि,
अवसर की पहचान, वाणी में माधुर्य, व्यक्तित्व में आकर्षण, स्वभाव में मिलनसारी आदि अनेक लाभदायक विशेषताएँ विकसित होने लगती हैं। इनके द्वारा वह गायत्री माता के श्री तत्त्व का उपासक भीतर ही
भीतर एक नए साँचे में ढलता है और उसमें ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं कि वह साधारण स्थिति से उन्नति करके धनी और वैभवशाली बन सकता है।
गायत्री-साधना से ऐसी त्रुटियाँ, जो मनुष्य को दुखी बनाती हैं और पतनकारी होती हैं, नष्ट होकर, वे विशेषताएँ उत्पन्न होती हैं, जिनके कारण मनुष्य क्रमश: समृद्धि, संपन्नता और उन्नति की ओर अग्रसर होता जाता है। गायत्री अपने सभी साधकों की झोली में सोने की अशरफियाँ नहीं उँडेलती, यह ठीक है, पर इसमें कुछ भी संदेह नहीं कि गायत्री की उपासना द्वारा साधक में ऐसी शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रभाव से वह अभावग्रसत या दीन-हीन नहीं रह सकता। इस पुस्तक में आगे चलकर जो उदाहरण दिए गए हैं, पाठक देखेंगे कि वे उनके जैसे ही साधारण कोटि के और सांसारिक साधनों से रहित व्यक्तियों के थे।
Table of content
1.गायत्री द्वारा भौतिक सफलताएँ
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |