Preface
इसे एक मनोवैज्ञानिक चक्रव्यूह ही कहना चाहिए कि हम अपने को भूल बैठे हैं। अपने आपको अर्थात् आत्मा को। शरीर प्रत्यक्ष है, आत्मा अप्रत्यक्ष। चमड़े से बनी आँखें और मज्जा -तंतुओं से बना मस्तिष्क, केवल अपने स्तर के शरीर और मन को ही देख -समझ पाता है। जब तक चेतना-स्तर इतने तक सीमित रहेगा, तब तक शरीर और मन की सुख-सुविधाओं की बात ही सोची जाती रहेगी। उससे आगे बढ़कर तथ्य पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर सकना सम्भव ही न होगा कि हमारी आत्मा का स्वरूप एवं लक्ष्य क्या है और आन्तरिक प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए क्या किया जाना चाहिए ? क्या किया जा सकता है ?
Table of content
1. जगत मात्र जड़ तत्वों का उपादान नहीं
2. आत्मा का आस्तित्व एक गंभीर प्रश्न
3. आत्मा-वैज्ञानिक प्रयोगशाला में
4. आत्मा का आस्तित्व अमान्य न किया जाय
5. आत्मा की अमरता को जाने और प्राप्त करें
6. अपने को जानें भाव बंधनों से छूटें
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
128 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |