Preface
मृत्यु से डरने की कोई बात नहीं क्योंकि कपड़ा बदलने के समान यह एक स्वाभाविक एवं साधारण बात है । परन्तु मृत्यु को ध्यान में रखना आवश्यक है । मार्ग के विश्रामगृह में ठहरे हुए यात्री को जैसे रातभर ठहर कर कूच की तैयारी करनी पड़ती है और फिर दूसरी रात किसी अन्य विश्रामगृह में ठहरना पड़ता है उसी प्रकार जीव भी एक जीवन को छोड़ कर दूसरे जीवनों में प्रवेश करता रहता है ।
क्षणिक जीवन में कोई ऐसा कार्य न करना चाहिए जिससे आगे की प्रगति में बाधा पड़े । विश्रामगृह के अनावश्यक झगड़ों में उलझ कर जैसे कोई मूर्ख यात्री मुकदमा जेल में फँस जाता है और अपनी यात्रा का उद्देश्य बिगाड़ लेता है वैसे ही जो लोग वर्तमान जीवन के तुच्छ लाभों के लिए अपना परम् लक्ष्य नष्ट कर लेते हैं वे निश्चय ही अज्ञानी हैं ।
जीवन एक नाटक की तरह है । इस अभिनय को हमें इस प्रकार खेलना चाहिए कि दूसरों को प्रसन्नता हो और अपनी प्रशंसा हो । नाटक खेलते समय सुख और दुःख के अनेक प्रसंग आते हैं पर अभिनय करने वाला पात्र उस अवसर पर वस्तुत:सुखी या दुःखी नहीं होता । इसी प्रकार हम को जीवन रूपी खेल में बिना किसी उद्वेग के अभिनय का कौशल प्रदर्शित करना चाहिए । पर साथ ही अपने लक्ष्य को भूलना न चाहिए ।
Table of content
1. जीवन का लक्ष्य स्थिर करो
2. जीवन के तेरह रूप
3. अपने जीवन को दिव्य बनाइये
4. सिद्धांतों पर आचरण करना आवश्यक है
5. मृत्यु का भय त्याग दीजिए
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |