Preface
नहीं दृशं संवननं त्रिषुलोकेषु विद्यते ।।
दया मैत्री च भूतेषु दानं च मधुरा चवाक् ।।१२।।
(म० भा० आदि० अ ०८७)
परमेश्वर का वशीकरण ऐसा तीनों लोकों में नहीं जैसा कि दुखियों पर दया करना, बराबर वालों से मित्रता, उदारता और मीठी वाणी ।। नीलकंठ टीकाकार ने लिखा है कि- "सवननं संभजनं परमेश्वर स्याराधनन्" अर्थात् इस वचन में 'संवननम' का अर्थ परमेश्वर की आराधन है ।।
तप्यन्ते लोक तापेन प्रायश: साधवोजना :।
परमाराधन तृद्धि पुरुषस्या खिलात्मन: ।।४४।।
(( भा० ८\७)
प्राय: करके सज्जन पुरुष लोक ताप से तप जाते हैं अर्थात् मनुष्यों: पर विपत्ति देख उसको दूर करने के लिए दुःख उठाते हैं और यही (दूसरों का दुख दूर करना) भगवान की परम आराधना है ।।
Table of content
1. ईश्वर और स्वर्ग प्राप्ति का सच्चा मार्ग
2. सच्चा ईश्वर भक्त कौन है
3. भगवान् की पूजा के पुष्प
4. भगवान् का निवास कहाँ हैं
5. दुराचारी से भगवान् अप्रसन्न रहते हैं
6. सदाचारी धर्मराज के यहाँ आराम से जाता है
7. सदाचारी मोक्ष का अधिकारी
8. सदाचारी ब्रह्मा के पद को प्राप्त होता है
9. दुराचारी नरक में जाता है।
10. सदाचारी साधु है
11. सदाचारी को तीर्थ का फल प्राप्त होता है
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12X18 cm |