Preface
गुरुगीता साधक संजीवनी है ।। आदिमाता पार्वती की जिज्ञासा पर भगवान् शिव प्रसन्न होकर उन्हें उपदेश देते हैं ।। इस पूरे वार्त्तालाप में जो स्कन्द पुराण के उत्तरखण्ड में लगभग पौने दो सौ श्लोकों में आया है, सद्गुरु की महिमा का वर्णन है ।। गुरु- शिष्य संबंध इस धरती का सर्वाधिक पावन और आत्मीय संबंध है ।। गुरुगीता एक प्रकार से हर शिष्य के लिए साधना का एक श्रेष्ठ माध्यम है ।। इससे गुरुकृपा सतत- अनवरत प्राप्त की जा सकती है ।।
गुरुगीता में सभी कुछ वह है, जो पुराण में श्री वेदव्यास जी ने लिखा है ।। आदिशक्ति द्वारा शिष्य भाव से जिज्ञासा व्यक्त की गयी ।। जगन्नियन्ता तंत्राधिपति देवों के देव भगवान् महाकाल गुरु रूप में उसका समाधान करते हैं ।। इसी तरह शक्ति स्वरूपा माता भगवती देवी एवं परम पूज्य गुरुदेव का जीवन रहा है, जिनका सान्निध्य हम सभी को मिला है ।।
Table of content
1. संकल्प
2. गायत्री जप
3. श्री गुरुगीता न्यास
4. विनियोग
5. करन्यास
6. हृदयादि न्यास
7. ध्यानम्
8. अथ श्रीगुरुगीता
9. गायत्री जप
10. श्री सद्गुरु स्तुति
11. स्तुति भावार्थ
12. क्षमा प्रार्थना
Author |
Dr. Pranav Pandya |
Edition |
Brahamavarchasva |
Publication |
Shree vedmata Gayatri Trust (TMD) |
Publisher |
Vedmata Gayatri Trust (TMD) |
Page Length |
84 |
Dimensions |
11 X 14 cm |