Preface
किसी की यह धारणा सर्वथा मिथ्या है कि सुख का निवास किन्हीं पदार्थों में है । यदि ऐसा रहा होता तो वे सारे पदार्थ जिन्हें सुखदायक माना जाता है, सबको समान रूप से सुखी और संतुष्ट रखते अथवा उन पदार्थों के मिल जाने पर मनुष्य सहज ही सुख संपन्न हो जाता, किंतु ऐसा देखा नहीं जाता । संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिन्हें संसार के वे अधिकांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, जिन्हें सुख का संसाधन माना जाता है । किंतु ऐसे संपन्न व्यक्ति भी असंतोष, अशांति, अतृप्ति अथवा शोक-संतापों से जलते देखे जाते हैं । उनके उपलब्ध पदार्थ उनका दुःख मिटाने में जरा भी सहायक नहीं हो पाते ।
Table of content
1. बाहरी योग से अंतर्योग अधिक श्रेयस्कर
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistar trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
9 X 12 cm |