Preface
स्वर- योग भारत की अति प्राचीन और शिरोमणि विद्या है ।। इसका आश्चर्यजनक फल और साधन की सरलता देखते हुए किसी समय में इस विद्या का जनता के हृदय पर साम्राज्य था किंतु समय के प्रभाव से इसके कितने ही आवश्यक अंग लुप्त हो गए ।। कहीं- कहीं क्षेपक मिल गए ।। आलस्य और अज्ञान के कारण साधन घट गए, जिन लोगों को ज्ञान था उन्होंने छिपाया ।। तदनुसार आज यह विद्या बड़े अपूर्ण और विकृत रूप में दृष्टिगोचर होती है ।। फिर भी इसके खंडहरों पर दृष्टिपात किया जाए तो आश्चर्य होता है कि योग के इस विशुद्ध वैज्ञानिक और चमत्कारिक अंग की परिपूर्ण शोध क्यों नहीं हो रही है ? ज्योतिष के फलित शास्त्र और भविष्य कथन में कुछ अधिक मिलावट हुई है और वर्तमान ज्योतिषी उसकी तह तक नहीं पहुँच पाते, तदनुसार उसके वचन अधिकांश में सत्य नहीं होते ।।
Table of content
1. स्वर योग का रहस्य
2. स्वर संबंधी कुछ आवश्यक जानकारी
3. स्वर बदलना
4. स्वर संयम से दीर्घ जीवन
5. स्वर को बदलने की सरल रीति
6. अग्नि निवारण कौशल
7. स्वर परिवर्तन के हानि-लाभ
8. मनचाही संतान उत्पन्न करना
9. स्वर योग से रोग निवारण
10. उदर-शुद्धि के कुछ उपाय
11. अन्य शास्त्रों के कुछ अनुभूत प्रयोग
12. तत्त्वज्ञान से दिव्य दृष्टि
Author |
Pt. Shriram Sharma Aaachrya |
Publication |
Yug Nirman Yojana trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
52 |
Dimensions |
12 X 18 cm |