Preface
यज्ञ और गायत्री हमारी देव संस्कृति के दो मूल आधार हैं ।। इसी से यज्ञ को भारतीय संस्कृति का पिता और गायत्री को उसकी माता कहा गया है ।। इनके बिना तो फिर हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा ।। चारों ओर व्याप्त आसुरी शक्तियों को, लोभ- लालच की पशु प्रवृत्तियों को, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय अराजकताओं को तथा आपराधिक अवांछनीयताओं को समूल नष्ट करने हेतु यज्ञ और गायत्री ही अमोघ ब्रह्मास्त्र हैं ।। इन दोनों को भूल जाने के कारण ही भारतीय समाज की आज इतनी दुर्दशा हो रही है ।।
परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से इस तथ्य को बहुत पहले ही पहचान था ।। पशुता की भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों के दुर्गंधयुक्त दल- दल में आकंठ डूबे हुए मनुष्य को देखकर भी उन्होंने कभी निराशा या हताशा का अनुभव नहीं किया ।। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह घोषणा की थी कि मनुष्य परमेश्वर का राजकुमार है, दिव्य क्षमताओं से परिपूर्ण है, देवता है ।। वह केवल परिस्थितिवश अपने लक्ष्य से भटक गया है ।। सद्बुद्धि का जागरण होने से वह स्वयं इन समस्याओं से सफलतापूर्वक जूझ सकता है ।।
Table of content
1. यज्ञ क्या है ?
2. यज्ञ मनुष्य के द्वारा ही क्यों ?
3. यज्ञीय भावना ही देव पूजन है, दान है
4. श्रम भी यज्ञ ही है
5. संगतिकरण-सामूहिकता
6. उत्कृष्ट दैवी तत्वों का संवर्धन
7. यज्ञ से भौतिक लाभ
8. यज्ञ और पर्यावरण
9. यज्ञ से स्वास्थ्य संवर्धन
10. गायत्री का भावार्थ
11. ओंकार
12. भूः भुवः स्वः
Author |
Pt. Shriram Sharma Aaachrya |
Publication |
Yug Nirman Yojana trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
96 |
Dimensions |
12 X 18 cm |