Preface
वेद लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के ग्रंथ हैं । यद्यपि उनकीभाषा के अति प्राचीन और अप्रचलित होने के कारण उनके अर्थ के संबंध में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है, पर इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि उनमें उच्चकोटि के आध्यात्मिक सिद्धांत,विद्या, कला और व्यवहार संबंधी ज्ञान का समावेश है । यद्यपि यहज्ञान संक्षिप्त और सूत्र रूप से एक-एक, दो -दो ऋचाओं में दिया गया है, जिसका आशय प्रत्येक पाठक शीघ्र हृदयंगम नहीं कर सकता,पर उन्हीं का आधार लेकर विद्वानों ने बड़े-बड़े शास्त्रों और अध्यात्म विद्या के उन महान ग्रंथों की रचना की हैँ, जो हजारों वर्षो से उत्थान मार्ग के पथिकों का मार्गदर्शन कर रहे है ।
वेदों के ज्ञान की एक विशेषता यह भी है कि वह किसी खास जाति, संप्रदाय, मत-मतांतर के अनुयाइयों की दृष्टि से प्रकट नहीं किया गया है । वरन उसका उद्देश्य और क्षेत्र सार्व भौमिक है और वह सभी देश तथा सभी समयों के सभ्य और सुसंस्कृत नरतन धारियों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है । उनमें जो उपदेश और मार्गदर्शन मिलता है वह मनुष्य मात्र के लिए कल्याणकारी और उद्धारक सिद्ध होता है ।
वेदार्थ के संबंध में जो मतभेद दिखाई पड़ता है, वह आधुनिक नहीं अति प्राचीन भी है । साधारण पाठक तो समझते है कि वेदोंके महत्व को घटाने के लिए विधर्मी, विदेशी लेखकों ने उनके अर्थका अनर्थ किया है और उन्हें अर्ध सभ्य पशुपाल कों के गीत बतानेकी धृष्टता की है । पर अब से हजारों वर्ष पहले भी प्राचीन भारतीय विद्वानों ने वेदों के तरह-तरह के भाष्य किए है । धर्मप्रेमी सज्जनोंने उनका अर्थ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किया है और अन्य लोगों ने उन्हीं ऋचाओं को तोड-मरोड कर उनका अर्थ वाममार्ग के सिद्धांतों
Table of content
1. पं. श्रीराम शर्मा की जीवन यात्रा
2. भूमिका
3. खण्ड १ ब्राह्मणत्व
4. खण्ड २ आत्मबल
5. खण्ड ३ चरित्र निर्माण
6. खण्ड ४ दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन
7. खण्ड ५ परिवार और स्वास्थ्य
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
400 |
Dimensions |
180mmX120mmX2mm |