Preface
देवियो, भाइयो! मित्रो! भगवान इंसान नहीं है, फिर आप समझ लीजिए । भगवान एक शक्ति का नाम है । इस शक्ति को हमने अपनी जरूरत के मुताबिक अपने ध्यान की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति के रूप में गढ़ लिया है । अगर मेंढक भगवान को बनाएगा तो मेंढक के तरीके से बनाएगा और मेंढक भगवान के भक्त होंगे । आपको मालूम है कि नहीं, अगर कभी भगवान ने मेंढकों की बिरादरी में जन्म लिया होता तो वे मेंढक की शक्ल बनाएँगे । अगर कहीं हिरनों की दुनिया हुई और हिरनों ने भक्ति का सिद्धांत सीख लिया तो आप यकीन रखिए कि भगवान हिरन के रूप में आएँगे, इनसान के रूप में नहीं आएँगे । अगर मच्छरों की दुनिया कहीं हुई और मच्छरों की दुनिया में भगवान की भक्ति का विस्तार कहीं फैल गया तब ? भगवान क्या इनसान के रूप में आएँगे ? नहीं, इनसान रूप में नहीं, मच्छर के रूप में आएँगे, क्योंकि यह जीव, यह प्राणी जिस स्तर का है, उसी स्तर का भगवान गढ़ लेता है । गढ़ लेता है ? अरे बाबा! सुनता है कि नहीं, गढ़ लेता है । हमने भगवान गढ़ा हुआ है । किसका गढ़ा हुआ है? अपने ध्यान की, धारणा की, भावना की परिपुष्टि के लिए हमने भगवान को गढ़ा है । तो क्या भगवान की शक्ल नहीं है ? नहीं, भगवान की शक्ल नहीं हो सकती ।
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Publication |
Yug Nirman Trust, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
9 X 12 cm |