Preface
मित्रो! आपने व्याख्यान सुने हों या न सुने हों, लेकिन अगर आप यज्ञ भगवान की पूजा करते हैं तो उनसे आप दो शिक्षाएँ जरूर सुन लीजिए ।। वे हमको और आपको जो दो शिक्षाएँ- उपदेश देते हैं, वे एक से बढ़कर एक शानदार हैं ।। एक तो आपको विचारशील होना चाहिए ज्ञानवान होना चाहिए और आपको क्रियाशील होना चाहिए ।। ज्ञानयोगी भी होना चाहिए और आपको कर्मयोगी भी होना चाहिए ।। यदि यह ज्ञान आप यज्ञ से सीख लेते हैं तो यज्ञ का पूजन करना, यज्ञ को भगवान मानना, यज्ञ में आहुति देना आपका सार्थक हो जाता है। ये बातें दो शिक्षाओं तक ही सीमित नहीं होतीं, भगवान सिखाते हैं और आप सीखते हैं। नहीं बेटे! ये सार्वजनिक सार्वजनीन और सार्वभौमिक शिक्षाएँ हैं ।। इन्हें हर आदमी को समझाया जाना चाहिए कि आपके पास ज्ञान की कमी है, उसे बढ़ाने की कोशिश कीजिए ।। दौलत के बारे में आप संतोष कर सकते हैं, पर ज्ञान के बारे में आपको संतोष नहीं होना चाहिए पढ़ने के बारे में आपको संतोष नहीं होना चाहिए ।। जानकारी के बारे में आपको संतोष नहीं होना चाहिए कि अब हमारे पास काफी जानकारी हो गई हमको अब और अधिक जानने की जरूरत नहीं है ।। ऐसा हमारे लिए यह मत कहिए कि स्वाध्याय आवश्यक है, यह कहना बंद कीजिए ।। ज्ञान की शिक्षा, ज्ञान के विस्तार की शिक्षा और कर्म के विस्तार की शिक्षा हमारा पुरोहित हमको देता है ।। ये दो यज्ञाग्नि की, पुरोहित की शिक्षाएँ हो गई ।। अब आगे चलिए ।।
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Publication |
Yug Nirman Trust, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
9 X 12 cm |