Preface
कर्म ही मानव जीवन का मेरुदंड है ।। यदि कर्म नहीं रहा होता तो यह मानव योनि लुंज- पुंज निरर्थक- सी बनकर रह गई होती ।। इसे सुर दुर्लभ जीवन की संज्ञा नहीं मिली होती ।। कर्म ही वह सौरभ है जो इस विश्व को नंदन कानन बनाए हुए है ।।
सर्वव्यापी वायु की तरह कर्म मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षण में समाया हुआ है ।। सोते, जागते, उठते, बैठते, खाते, पीते, काम करते, विश्राम करते हुए मनुष्य कर्म ही करता है ।। यह कर्म ही उसके सुख- दुःख का हेतु होता है ।। पाप- पुण्य, स्वर्ग- नरक का आधार कर्म ही है ।।
कर्म तो सभी करते हैं, किंतु किस मनोयोग से कर्म किया जाए कि सफलता मिलकर ही रहे ।। असफल हो जाने पर किस प्रकार बिना उद्विग्न हुए पुन: उसमें प्रवृत्त हुआ जा सके ।। कर्म तथा आकांक्षाओं, विचारणाओ में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित किया जाए जिससे स्वयं सुखी होने के साथ- साथ विश्वमानव को भी सुखी बनाया जा सके ।। कर्म उसके कर्ता को पहले क्षण सफलता के हर्ष से उन्मत्त बना देता है तो दूसरे ही क्षण असफलता का विषाद उसे सिर धुनने को विवश कर देता है ।। इस विडंबना से बचने के लिए कर्म के प्रति समग्र दृष्टिकोण रखना आवश्यक है ।।
Table of content
1. कर्मयोग और कर्म-कौशल
2. महत्त्वाकांक्षाओं का पागलपन
3. अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का केंद्र बिंदु बदलें
4. अनुपयुक्त आकाक्षाएँ और उनका असंतोष
5. पुरुषार्थ धर्म है, कामनाएँ बंधन
6. निराशा से बचने का उपाय-कम कामनाएँ
7. कामनाएँ असंगत न होने पाएँ
8. अनावश्यक आकांक्षाएँ और उनकी दूषित प्रतिक्रिया
9. कामनाओं को नियंत्रित और मर्यादित रखें
10. आवश्यकताएँ बढ़ाकर दुःख दारिद्रय में न फसें
11. योग का वास्तविक स्वरूप और वर्तमान आस्था
12. कर्मयोग की अनिवार्य आवश्यकता
13. सामान्य जीवन में महानता का समावेश
14. कर्मदेव का अपमान न करें
15. साहसिकता-कर्मयोग की कसौटी
16. योग: कर्मसु कौशलम्
17. अपने पर आप भरोसा रखकर आगे बढ़िए
18. हम आत्मविश्वासी बनें, अपना भरोसा करें
19. कर्म और निरंतर कर्म
20. जीवन को आनंदित रखने वाला कर्मयोग
Author |
Pt Shriram Sharma Acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
176 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |