Preface
प्रेम को परमेश्वर कहते हैं । परमेश्वर इंद्रियातीत है, उसे नेत्र आदि इंद्रियों से या बुद्धि कल्पना से नहीं जाना जा सकता । भाव संवेदनाएँ ही उसे अनुभव में उतारती हैं । प्रेम निकटवर्ती से होता है या निकटवर्ती से प्रेम हो जाता है । हम शरीर को प्यार करते हैं । उसे सुखी बनाने के लिए अधिक से अधिक प्रयास और त्याग करते हैं । यहाँ तक कि वासना विलासिता के लिए पतन पराभव तक स्वीकार कर लेते है । नरक, भव-बंधन, अपयश, तक स्वीकार करते हैं पर अपने प्रेमी को सुखी संतुष्ट बनाने लिए उचित-अनुचित तक का विचार छोड़कर प्रेयसी काया के इच्छानुवर्ती बनते हैं । प्रेम में प्रेमी के लिए बहुत कुछ सब कुछ, करना पड़ता है । सेवा सहायता करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती ।
माता और बच्चे के बीच जो वात्सल्य चलता है, उसे प्रेम का सांसारिक उदाहरण समझा जा सकता है । बच्चा अनजान होने के कारण अनेक प्रकार की गड़बड़ियाँ ही उत्पन्न करता रहता है पर माता उस पर क्षोभ किए बिना सब कुछ सहन करती रहती है । अपना लाल लहू सफेद दूध के रूप में परिणत करके बालक को पिलाती है पर प्रतिदान की बात कभी सोचती तक नहीं ।
कृतज्ञता व्यक्त किए जाने की भी आशा नहीं करती है । उसकी आवश्यकताएँ पूरी करने में कुछ उठा नहीं रखती । दूसरे सभी के बच्चों से अपना बालक कहीं अधिक सुंदर लगता है । उसे आँखों का तारा समझती रहती है । हँसता देखकर प्रमुदित हो उठती है और उदास देखकर चिंता में डूब जाती है । प्रेम तो प्रेम जो ठहरा । उसके साथ अनन्य आत्मीयता घुली रहती है । चिड़िया के घोंसले में से जब बाज झपट्टा मारकर अंडा या बच्चा उठा ले जाता है तो चिड़िया उसे छुड़ाने के लिए बाज के पीछे दौड़ती और आक्रमण करती है । तब उसे यह भय नहीं होता कि समर्थ बाज उलटकर उसका भी कचूमर निकाल सकता है ।
Table of content
1. प्रेम का स्वरूप और विस्तार विवरण
2. कन्या और वधू को कम दुलार न मिले
3. विवाह के साथ जुड़े हुए दायित्व
4. दांपत्य जीवन और सहचरत्व
5. सच्चे दांपत्य प्रेम की कसौटी
6. महिलाओं को समर्थता का प्रशिक्षण
7. सत्प्रवृत्तियों का अनुशासन
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |